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वैभवलक्ष्मी व्रत

वैभवलक्ष्मी व्रत करने का नियम
1 यह व्रत सौभाग्यशाली स्त्रियां करें तो उनको अति उत्तम फल मिलता है l पर घर में यदि सौभाग्यशाली स्त्रियां न हों तो कोई भी स्त्री एवं कुमारिका भी यह व्रत कर सकती है l
2 स्त्री के बदले पुरुष भी यह व्रत करें तो उसे भी उत्तम फल अवश्य मिलता है l
3 यह व्रत पूरी श्रद्धा और पवित्र भाव से करना चाहिये खिन्न होकर या बिना भाव से यह व्रत नहीं करना चाहिये l
4 यह व्रत शुक्रवार को किया जाता है l व्रत शुरू करते वक्त 11 यह 21 शुक्रवार की मन्नत रखनी पड़ती है l शास्त्रीय विधि अनुसार ही व्रत करना चाहिये l मन्नत के शुक्रवार पूरे होने पर विधिपूर्वक शास्त्रीय रीति अनुसार उद्यापन विधि करनी चाहिये l यह विधि सरल है l किन्तु शास्त्रीय विधि अनुसार व्रत न करने पर व्रत का जरा भी फल नहीं मिलता है l
5 एक बार व्रत पूरा करने के पश्चात फिर मन्नत कर सकते है और फिर से व्रत कर सकते है l
6 माता लक्ष्मी देवी के अनेक स्वरूप है l उनमें उनका धनलक्ष्मी स्वरूप ही वैभवलक्ष्मी है और माता लक्ष्मी को श्रीयंत्र अति प्रिय है l व्रत करते हुए माँ लक्ष्मीजी के हर स्वरूप को और श्रीयंत्र को प्रणाम करना चाहिये l तभी व्रत का फल मिलता है l अगर हम इतनी भी मेहनत नहीं कर सकते है तो लक्ष्मीदेवी भी हमारे लिये कुछ करने को तैयार नहीं होंगी l और हम पर माँ की कृपा नहीं होगी l
7 व्रत के दिन सुबह से ही जय माँ लक्ष्मी जय माँ लक्ष्मी का रटन मन ही मन करना चहिये l और माँ का पूरे भाव से स्मरण करना चाहिये l
8 शुक्रवार के दिन यदि आप प्रवास या यात्रा पर गये हो तो वह शुक्रवार छोड़कर उनके बाद के शुक्रवार को व्रत करना चाहिये l पर व्रत अपने ही घर में करना चाहिये l सब मिला कर जितने शुक्रवार की मन्नत ली हो उतने शुक्रवार पूरे करने चाहिये l
9 घर में सोना न हो तो चांदी की चीज पूजा में रखनी चाहिये l अगर यह भी न हो तो रोकड़ रूपया रखना चाहिये l
10 व्रत पूरा होने पर कम से कम सात स्त्रियों को या आपकी इच्छा अनुसार जैसे 11,21,51,101, स्त्रियों का वैभव लक्ष्मी व्रत की पुस्तक कुमकुम का तिलक करके भेंट के रूप में देनी चाहिये l जितनी ज्यादा पुस्तक आप देंगे उतनी माँ लक्ष्मी की ज्यादा कृपा होगी और माँ लक्ष्मी जी का यह अदभुत व्रत का ज्यादा प्रचार होगा l
11 व्रत शुक्रवार को स्त्री रजस्वला हो या सूतकी हो तो वह शुक्रवार छोड़ देना चाहिये और बाद के शुक्रवार से व्रत शुरू करना चाहिये l पर जितने शुक्रवार की मन्नत मानी हो उतने शुक्रवार पूरे करने चाहिये l
12 व्रत की विधि शुरू करते वक्त लक्ष्मी स्तवन का एक बार पाठ करना चहिये l
13 व्रत के दिन हो सके तो उपवास करना चाहिये और शाम को व्रत की विधि करके माँ का प्रसाद लेकर शुक्रवार करना चाहिये l अगर न हो सके तो फलाहार या एक बार भोजन करके शुक्रवार करना चाहिये l अगर व्रतधारी का शरीर बहुत कमजोर हो तो ही दो बार भोजन ले सकते है l सबसे महत्व की बात यही है कि व्रतधारी माँ लक्ष्मीजी पर पूरी - पूरी श्रद्धा और भावना रखे l और मेरी मनोकामना माँ पूरी करेगी ही ऐसा दृढ संकल्प करें l

वैभवलक्ष्मी वर्त की कथा
एक बड़ा शहर था इस शहर में, लाखों लोग रहते थे l इस पहले के ज़माने के लोग साथ साथ रहते थे और एक दूसरे के काम आते थे l पर नये जमाने के लोगों का स्वरूप ही अलग सा है l सब अपने अपने काम में रत रहते है l किसी को किसी की परवाह नहीं l घर के सदस्यों को भी एक -दूसरे की परवाह नहीं होती l भजन - कीर्तन, भक्ति - भाव, दया - माया, परोपकार जैसे संस्कार कम हो गये हैं l शहर में बुराइयाँ बढ़ गई थी l शराब, जुआ,रेस , व्यभिचार चोरी - डकैती बगैरह बहुत से गुनाह शहर में होते थे l
कहावत हैं की हजारों निराशा में एक अमर आशा छिपी हुई है l इसी तरह इतनी सारी बुराइयों के बावजूद शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे l
 ऐसे अच्छे लोगों में शीला और उनके पति की गृहस्थी मानी जाती थी l शीला धार्मिक प्रकृति की और संतोषी थी l उनका पति भी विवेकी और सुशील था l
शीला और उनका पति ईमानदारी से जीते थे l वे किसी की बुराई करते न थे और प्रभु भजन में अच्छी तरह समय व्यतीत कर रहे थे l उनकी गृहस्थी आदर्श गृहस्थी थी और शहर के लोग उनकी गृहस्थी की सराहना करते थे
शीला की गृहस्थी इसी तरह ख़ुशी-खुशी चल रही थी l पर कहा जाता है कि 'कर्म कि गति अकल है, विधाता के लिखे लेख कोई नहीं समझ सकता है l इन्सान का नसीब पल भर में राजा को रंक बना देता है और रंक को राजा l शीला के पति के अगले जन्म के कर्म भोगने के बाकि रह गये होंगे कि वह बुरे लोगों से दोस्ती कर बैठा l वह जल्द से जल्द 'करोड़पति' होने के ख्वाब देखने लगा l इसलिये वह गलत रस्ते पर चढ़ गया और 'करोड़पति' की बजाय 'रोडपति' बन गया l याने रास्ते पर भटकते भिखारी जैसी उसकी हालत हो गई थी l
शहर में शराब, जुआ, रेस, चरस -गांजा वगैरह बदिया फ़ैली हुई थी l उसमें शीला का पति भी फँस गया l दोस्तों के साथ उसे भी शराब की आदत हो गई l जल्द से जल्द पैसे वाला बनने की लालच में दोस्तों के साथ रेस जुआ भी खेलने लगा l इस तरह बचाई हुई धनराशि, पत्नी के गहने कुछ रेस-जुए में गँवा दिया था l
इसी तरह एक वक़्त ऐसा भी था कि वह सुशील पत्नी शीला के साथ मजे में रहता था और प्रभु भजन में सुख-शांति से वक़्त व्यतीत करता था l उसके बजाय घर में दरिद्रता और भुखमरी फ़ैल गई l सुख से खाने कि बजाय दो वक़्त भोजन के लाले पड़ गये l और शीला को पति की गालियां खाने का वक़्त आया था l
शीला सुशील और संस्कारी स्त्री थी l उसको पति के बर्ताव से बहुत दुःख हुआ l  किन्तु वह भगवन पर भरोसा करके बड़ा दिल रख कर दुःख सहने लगी l कहा जाता है कि 'सुख के पीछे दुःख और दुःख के पीछे सुख ' आता ही है इसलिये दुःख के बाद सुख आयेगा ही, ऐसी श्रद्धा के साथ शीला प्रभु भक्ति में लीन रहने लगी l
इस तरह शीला असहाय दुःख सहते-सहते प्रभु भक्ति में वक़्त बिताने लगी l  अचानक एक दिन दोपहर को उनके द्वारपर किसी ने दस्तक दी l
शीला सोच में पड़ गई कि मुझ जैसे गरीब के घर इस वक़्त कौन आया होगा ? फिर भी द्वार पर आये हुए अतिथि का आदर करना चाहिये, ऐसे आर्यधर्म के संस्कार वाली शीला ने खड़े होकर द्वार खोला l देखा तो सामने एक मांजी खड़ी थी l वे बड़ी उम्र की लगती थी l किन्तु उनके चेहरे पर अलौकिक तेज निखर रहा था l उनकी आँखों में से मानो अमृत बह रहा था l उनका भव्य चेहरा करुणा और प्यार से छलकता था l उनको देखते ही शीला के मन में अपार शांति छा गई l वैसे शीला इस मांजी को पहचानती न थी l फिर भी उनको देखकर शीला के रोम - रोम में आनंद छा गया l शीला मांजी को आदर के साथ घर में ले आयीl घर में बिठाने के लिए कुछ भी नहीं था l अतः शीला ने सकुचा कर एक फटी हुई चन्द्दर पर उनको बिठाया l मांजी ने कहा क्यों ! क्यों पहचाना नहीं
शीला ने संकुछ कर कहा माँ ! आपको देखते ही बहुत ख़ुशी हो रही हैं l बहुत शांति हो रही हैं l ऐसा लगता हैं कि मैं बहुत दिनों से जिसे ढूढ़ रही थी वे आप ही हैं पर में आपको पहचान नहीं सकती l
मांजी ने हँस कर कहा : क्यों भूल गई ? हर शुक्रवार को लक्ष्मीजी के मंदिर में भजन - कीर्तन होते हैं तब मैं भी वहां आती हूँ l वहाँ हर शुक्रवार को हम मिलते हैं l
पति गलत रास्ते पर चढ़ गया, तब से शीला बहुत दुःखी हो गई थी और दुःख की मारी वह लक्ष्मीजी के मंदिर में भी नहीं जाती थी l बहार के लोगों के साथ नजर मिलाते भी उसे शर्म लगती थी l उसने याददास्त पर जोर दिया पर यह मांजी याद नहीं आ रहे थे l
तभी मांजी ने कहा, 'तू लक्ष्मीजी, के मंदिर में कितने मधुर भजन गाती थी ! अभी-अभी तू दिखाई नहीं देती थी, इसलिये मुझे हुआ कि तू क्यों नहीं आती है ? कहीं बीमार तो नहीं हो गई है न ? ऐसा सोच कर मैं तुझे मिलने चली आई हूँ l
मांजी के अति प्रेम भरे शब्दों से शीला का ह्रदय पिघल गया l उसकी आँखों में आंसू  आ गयें l मांजी के सामने वह बिलख- बिलख कर रोने लगी l यह देख कर मांजी शीला के नजदीक सरके और उसकी सिसकती पीठ पर प्यार भरा हाथ फेर कर सांत्वंना देने लगे l
मांजी ने कहा बेटी ! सुख और दुःख तो धुप और छाव जैस होते है l सुख के पीछे दुःख आता है तो दुःख के पीछे सुख भी आता है l धैर्य रखो बेटी ! और तुझे क्या परेशानी है ? तेरे दुःख की बात मुझे सुना l तेरा मन भी हलका हो जायेगा और तेरे दुःख का कोई उपाय भी मिल जायेगा l
मांजी की बात सुन कर शीला के मन को शांति मिली l उसने मांजी को कहा, माँ ! मेरी गृहस्थी में भरपूर सुख और खुशियाँ थी l मेरे पति भी सुशील थे l भगवन की कृपा से पैसे की बात में भी हमें संतोष था l हम शांति से गृहस्थी चलाते ईश्वर-भक्ति में अपना वक़्त व्यतीत करते थे l यकायक हमारा भाग्य हमसे  रूठ गया l मेरे पति को बुरी दोस्ती हो गई l बुरी दोस्ती की वजह से वे शराब, जुआ, रेस, चरस-गांजा बगैरह खराब आदतों के शिकार हो गये और उन्होंने सब कुछ गंवा दिया l और हम रास्ते के भिखारी जैसे बन गये l
यह सुन मांजी ने कहा : सुख के पीछे दुःख और दुःख के पीछे सुख आता ही रहता है l ऐसा भी कहा जाता है कि 'कर्म कि गति न्यारी होती है l हर इन्सान को अपने कर्म भुगतने ही पड़ते है l इसलिये तू चिंता मत कर l अब तू कर्म भुगत चुकी है l  अब तुम्हारे सुख के दिन अवश्य आयेंगे l तू तो माँ लक्ष्मीजी की भक्त्त है l माँ लक्ष्मीजी तो प्रेम और करुणा के अवतार है l वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती है l इसलिये तू धैर्य रख के माँ लक्ष्मीजी का व्रत' कर  इससे सब कुछ ठीक हो जायेगा l
माँ लक्ष्मीजी का व्रत' करने की बात सुन कर शीला के चेहरे पर चमक आ गई l उसने पूछा : माँ ! लक्ष्मीजी का व्रत कैसे किया जाता हैं, वह मुझे समझाइये l मैं यह व्रत अवश्य करूंगी l
मांजी ने कहा, 'बेटी ! माँ लक्ष्मीजी का व्रत बहुत सरल है l उसे 'वरदलक्ष्मी व्रत' कहा जाता है l यह व्रत करने वाले की सब मनोकामना पूर्ण होती है l  वह सुख-संपत्ति और यश प्राप्त करता है l 'ऐसा कह कर मांजी 'वैभवलक्ष्म व्रत' की विधि कहने लगी l
बेटा ! वैभवलक्ष्मी वर्त वैसे तो सीधा-सादा व्रत है l किन्तु कई लोग यह व्रत गलत तरीके से करते है l अतः उसका फल नहीं मिलता l कई लोग कहते है कि सोने के गहने की हल्दी-कुमकुम से पूजा करो l बस ! व्रत हो गया l पर ऐसा नहीं है l कोई भी व्रत शास्त्रीय विधिपूर्वक करना चाहिये l तभी उसका फल मिलता है l सिर्फ सोने के गहने की पूजा करने से फल मिल जाता हो तो सभी आज लखपति बन गये होते l सच्ची बात यह है कि सोने के गहनो का विधि पूजन करना चाहिए l व्रत की उद्यापन विधि भी शास्त्रीय विधि मुताबिक करनी चाहिये l तभी यह 'वैभवलक्ष्मी व्रत' फल देता है l
यह व्रत शुक्रवार को करना चाहिये l सुबह में स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनो और सारा दिन मन में 'जय माँ लक्ष्मी' जय माँ लक्ष्मी' का रटन करते रहो l किसी कि चुगली नहीं करनी चाहिये l शाम को पूर्व दिशा में मुहँ रख सकें, ऐसी तरह आसन पर बैठ जाओ l
सामने पाटा रख कर उसके ऊपर रुमाल रखो l रुमाल पर चावल का छोटा सा ढेर पर पानी से भरा तांबे का कलश रखकर कलश पर एक कटोरी रखो l उस कटोरी में एक सोने का गहना रखो l सोने का न हो तो चांदी का भी चलेगा l
चांदी का न हों तो नकद रुपया भी चलेगा l बाद में घी का दीपक जल कर धुपसैली सुलगा कर रखो l
माँ लक्ष्मीजी के बहुत स्वरूप है, और माँ लक्ष्मीजी को 'श्रीयंत्र' अति प्रिय है अतः 'वैभवलक्ष्मी ' के पूजन विधि करते वक़्त सो प्रथम 'श्रीयंत्र' और लक्ष्मीजी के विविध स्वरूपों का सच्चे दिल से दर्शन करो l ========(इस पुस्तक के अगले पृष्ठों पर 'श्रीयंत्र' और माँ लक्ष्मीजी के विविध स्वरूपों की छबि दी गई है l
उसके बाद माँ 'लक्ष्मी स्तवन' का पाठ करो l बाद में कटोरी में रखे हुए गहने या रूपये को हल्दी-कुमकुम और चावल चढ़ा कर पूजा करो और लाल रंग का फूल चढ़ाओ l शाम को कोई मीठी चीज बना कर उसका प्रसाद रखो l न हो सके तो शक्कर या गुड भी चल सकता है l फिर आरती करके ग्यारह बार सच्चे हृदय से 'जय माँ लक्ष्मी' बोलो l बाद में ग्यारह या इक्कीस शुक्रवार यह वर्त करने का दृढ संकल्प माँ के सामने करो और आपकी जो मनोकामना हो वह पूरी करने की माँ लक्ष्मीजी की विनती करो l फिर माँ का प्रसाद बाँट दो l और थोड़ा प्रसाद अपने लिए रखो और अगर आप में शक्ति हो तो सारा दिन उपवास रखो और सिर्फ प्रसाद खा कर शुक्रवार करो l न शक्ति हो तो एक बार शाम को प्रसाद ग्रहण करते समय खाना लो l अगर थोड़ी शाक्ति भी न हो तो दो बार भोजन कर सकते हो l बाद में कटोरी में रखा गहना या रूपया ले लो l कलश का पानी तुलसी क्यारे में दाल दो l और चावल पक्षियों को डाल दो l इसी तरह शास्त्रीय विधि अनुसार वर्त करने से उसका फल अवश्य मिलता है l इस व्रत के प्रभाव से सब प्रकार की विपत्ति दूर हो कर आदमी मालामाल हो जाता
 है l संतान न हो उसे संतान प्राप्ति होती है सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रहता है l कुमारी लड़की को मनभावन पति मिलता है l
शीला यह सुनकर आनंदित हो गई l फिर पुछा : माँ ! आपने 'वैभवलक्ष्मी व्रत' की जो शास्त्रीय विधि बताई है, वैसे मैं अवश्य करूंगी l किन्तु इसकी उद्यापन विधि किस तरह करनी चाहिए ? यह भी कृपा करके सुनाइये l
मांजी ने कहा : ग्यारह या इक्कीस जो मन्नत मानी हो

वैभवलक्ष्मी माँ के चमत्कार
 1 लॉटरी लगी
नवसारी से एक बहन का पत्र था हम बहुत गरीब थे l मेरे पति अपंग और बीमार थे l दो छोटे बच्चे थे l बड़ी लड़की पोस्ट में नौकरी करती थी l उसकी तनख्वा में से घर खर्च चल रहा था l वह पच्चीस साल की हो गई थी इसलिये हम उसकी शादी करने की फिक्र में थे l
संयोग से एक लड़का भी मिल गया l लड़की को लड़का पसंद आ गया और लड़के को लड़की पसंद आ गई l शादी की तिथि पक्की हो गई l पर एक बाधा आई l लड़के की माँ ने कहा शादी भले ही सादगी से हो जाये पर आपकी लड़की 100 ग्राम सोने के गहने ले कर आयेगी तो ही यह शादी होगी l वरना मैं संमति नहीं दूँगी l
हमारी स्थिति चिंताजनक हो गई l मानो किनारे पर आयी नौका डूबने लगी l बचत तो थी नहीं l अब 100 ग्राम सोना कहाँ से निकालें ? मैं उदास होकर दरवाजे पर खड़ी थी l तभी बाहर के रास्ते पर से एक मोटर- साइकिल तेजी से गुजर गई l उसकी ऊपर से कोई चीज सरक कर हवा मैं उड़ी और नीचे गिर गई l मैं जिज्ञासा से बहार निकल कर देखने लगी कि क्या गिर गया ? तो वह वैभवलक्ष्मी व्रत की किताब थी l मैंने साड़ी से पोंछ कर उसे साफ किया और आँखों पर लगा कर बाहर ही बैठ कर पढ़ने लगी l
पढ़ते -पढ़ते मुझे हुआ कि मैं भी यह वैभवलक्ष्मी व्रत करूं तो मेरी आपत्ति भी टल जाये l लगता है माताजी ने मदद करने के लिये ही यह किताब मेरे तक पहुँचा दी होगी l मेरे मन मैं अदम्य श्रद्धा जाग गई l
दूसरे दिन शुक्रवार था l मैंने स्नान कर के ग्यारह शुक्रवार करने कि मन्नत मान कर संकल्प किया l और किताब मैं लिखे मुताबिक विधि अनुसार पूरे भाव और श्रद्धा से व्रत करने लगी l शुक्रवार को सारा दिन जय माँ लक्ष्मी का रटन किया l शाम को चावल के ढेर पर तांबे के जल से भरा कलश रख कर ऊपर कटोरी रखीl उसमें मेरे हाथ कि सोने की अंगूठी रखी l उस किताब मे लिखे अनुसार विधि पूजन करके गुड के प्रसाद रखा l
रात दिन मेरा ध्यान 'धनलक्ष्मी माँ' की छबि में लगा रहता l मैं रोज उनके दर्शन कर के गिड़गिड़ाती l  पांचवें शुक्रवार को शाम का मैंने 'धनलक्ष्मी माँ, की छबि का दर्शन करके पूजन विधि शुरू की तभीमेरी पंद्रह साल का लड़का दौड़ता आया l उसने कहा, माँ ! देख ! हमारी महाराष्ट्र की लॉटरी लगी l पूरे पचास हजारा का इनाम लगा है माँ
मैं आनंद से उछल पड़ी l  मैंने कहा तू जरा ठहर जा l मुझे पूजन कर लेने दे l प्रसाद ग्रहण करके बात करेंगे l मैं उमंग से व्रतविधि पूर्ण की और हम सबने अति श्रद्धा से माँ का प्रसाद ग्रहण किया l बाद में हम सब ने लॉटरी का नंबर चेक किया तो उनकी बात सच थी l
माताजी ने मेरी मुसीबत दूर कर दी थी l लॉटरी के पैसे मिलते ही उसमें से मैंने 100 ग्राम सोना ले कर लड़की के लिये गहने बनवाये और लड़की की शादी की l उसे गहने देकर ससुराल भेजी l
इस तरह 'वैभवलक्ष्मी व्रत' के प्रभाव से धनलक्ष्मी माँ ने मेरा दुःख दूर कर दिया l जय धनलक्ष्मी माँ

2 खोये हुए हीरे वापस मिले
मेरे पति हीरे की दलाली करते हैं l हमारी आवक भी अच्छी है l अचानक एक दिन हमारे पर विपत्ति टूट पड़ी l रात्रि को मेरे पति घर आये l रोज के मुताबिक शर्ट उतार कर कील पर लटका दिया l पेन्ट बदल कर लूंगी पहनी और पेन्ट के खीमे में से हीरे के पैकेट निकालने गये तो नहीं मिले l मैंने कीचन में से देखा की वे कुछ ढूंढ रहे है l मैंने पूछा की क्या ढूंढ रहे हो ? कुछ खो गया है ?
हाँ ! हीरे का पैकेट नहीं मिल रहा l पेन्ट के बायें जब में रखा था l नहीं मिल तो हम बरबाद हो जायेंगे l
मेरे भी होशोहवाश उड़ गये l तेजी से गैस बंद करके मैं और वे आने - जाने के रास्ते अपार्टमेंट कि सीढ़िया,रास्ता सब जगह ढूंढने लगे l पर कहीं भी पैकेट दिखाई नहीं दिया l
हम दोनों पति - पत्नी उदास हो कर सोफे पर बैठ गयेl बहुत सुख था l अब बहुत दुःख आ गया l
उसी समय मेरे पति का दोस्त अपनी पत्नी के साथ हम से मिलने आये l मैंने आवकार देकर उनको बिठाया और उन्होंने पानी दिया l हमारे उदास चेहरे देखकर उन्होंने हँस कर पुछा , क्या बात है भाई ! मुँह लटकाये क्यों बैठे हो ? लड़ाई - झगड़ा हो गया है क्या ?
मुझे रोना आ गया l मैंने रोते-रोते हीरे का पैकेट खो जाने कि बात कही l और वे लोग भी दंग रह गये l
कुछ सोच कर दोस्त कि पत्नी रमीला बहन मुझे रसोईघर में ले गई और कहा, भाभी ! आप मेरी एक बात मानोगी ?
क्या ?
'आप वैभवलक्ष्मी व्रत ' करने कि मन्नत मानो l आदमी व्रत में भले ही न मानते हो,पर हम औरतों को व्रत में श्रद्धा रखनी चाहिये l
यह व्रत धनलक्ष्मी माता का है l आप मन्नत रख लो l 'और उसने मुझे व्रत कि विधि बतायी l
मैंने तुरन्त ही हाथ -पांव धो कर इक्कीस शुक्रवार 'वैभवलक्ष्मी व्रत ' करने की मन्नत मानी और 51 वैभवलक्ष्मी व्रत की किताब बाँटने की मन्नत मानी l
सारी रात मैं 'जय माँ लक्ष्मी का रटन करती रही l सवेरे थोड़ा -थोड़ा उजाला होते ही माताजी की प्रेरणा से हम हीरे का पैकेट ढूंढने निकल पड़े l जिस रास्ते से वे स्कूटर पर आये थे वही रास्ते पर माँ का रटन करते-करते हम ध्यान से पैकेट ढूढ़ते धीर-धीरे आगे बढ़ने लगे l हीरा बाजार में दाखिल, होते ही एक कोने पर कूड़े में आधा से दबा हुए एक पैकेट पर मेरी नजर गई l मैंने पति को दिखाया l
यही है ! यही है ! मेरे पति ने चिल्लाते हुए तेजी से पैकेट उठा लिया l हीरे की छोटी -छोटी पूड़ी को रबड़ बैड से जकड़ कर एक पैकेट बनाया था , वह पैकेट वैसे का वैसा ही मिल गया
जब, शुक्रवार आया तब हम दोनों ने व्रत शुरू किया और पूरे भाव से इक्कीस शुक्रवार पूरे किये l उद्यापन विधि में हमने आपके यहाँ से 51 'वैभवलक्ष्मी व्रत ' की पुस्तक लेकर 51 स्त्रियों को उपहार में दी l

3 चोरी हो गये गहने वापस मिले
नीला बहन का फ्लेट का दरवाजा गलती से खुला रह गया था l उस समय ऊपर के फ्लैट में मिस्त्री का काम हो रहा था l ईट ले जाते हुए एक मजदूर ने यह देखा l वह नीयत का अच्छा नहीं था l उसने यह मौके का फायदा उठाया और फ्लेट में घुस गया l नीला बहन स्नान करने बाथरूम में गयी थी l  फ्लेट में कोई न था l मजदूर तेजी से सामान ऊपर -नीचे करने लगा ! अचानक बेडरूम में गद्दे के नीचे से सोने का हार,मंगलसूत्र और दो कंगन मिल गये l गहने को जेब में सरका कर वह तेजी से बाहर निकला और फिर से ईट लाने लगा l  आधे - पौने घंटे बाद पेट में दर्द होने का बहाना निकाल कर वह भाग निकला l शीला बहन को अच्छी कहो या बुरी यही आदत थी की रात को, गहने निकाल कर गद्दे के नीचे रख देती ,और दुसरे दिन खाना बना कर पहन लेती l उनको तो ख्याल भी नहीं था की गहने चोरी हो गये है l खाना बनाकर उन्होंने हाथ साफ किये और गहने पहनने के लिए गद्दे के नीचे हाथ डाला तो कुछ नहीं मिला l उन्होंने तेजी से सब उलट - पुलट कर डाला पर गहने कहीं भी नहीं मिले l उन्होंने सारा बैडरूम छान मारा l  पर कुछ नहीं मिला l वे तो जोर जोर से रोने लगी l रोने की आवाज सुन कर सब पड़ोसन दौड़ी आई और हकीकत सुनकर नीला बहन को सांत्वना देने लगी l उनका मायका पीछे की गली में ही था l कोई दौड़ कर वहां खबर दे आया l उनकी माँ और बहन भी दौड़ती आई l
माँ को देख कर नीला बहन फिर से सिसक - सिसक कर रोने लगी l माँ ने कहा ! नीला पहने हुए गहने निकालने ही नहीं चहिये l अगर निकाले तो अलमारी में रखने चाहिये l जो हुआ सो तू जानती है , मुझे 'धनलक्ष्मी माँ ' पर बहुत श्रद्धा है l उनका ग्यारह शुक्रवार वैभवलक्ष्मी व्रत करने की मन्नत ले l माँ तेरी बिगड़ी सुधरेगी l
नीला बहन ने तुरन्त हाथ - पांव धो कर ग्यारह शुक्रवार वैभवलक्ष्मी व्रत, करके ग्यारह 'वैभवलक्ष्मी व्रत की पुस्तक उपहार में देने की मन्नत मानी और मन ही मन 'जय माँ लक्ष्मी ' का जप पूरे भाव से करने लगी l
थोड़ी देर में उनके पति घर पर आये l नीला बहन ने रोते-रोते सब बात बताई ! पति ने कहा , रोने से कुछ नहीं होगा l चल थाने में रिपोर्ट लिखवायें l
दोनों पति -पत्नी घर बंद करके थाने गये और पुलिस इंस्पेक्टर
एक मजदूर को पकड़ कर वही थाने में आया और बोला
साब ! यह आदमी सुनार की दुकान के आगे टहल रहा था l मुझे शक हुआ और मैंने उसे पकड़ लिया l तो इसकी जेब में यह गहने निकल आये l और मैंने उसे पकड़ लिया l तो इसकी जेब में यह गहने निकल आये l और नीला बहन के ही चार गहने कांस्टेबल ने इन्स्पेक्टर की टेबल पर रख दिये, जिसकी भाहिती नीलाबहन इन्स्पेटर की टेबल पर रखा दिये , जिसकी भाहिती नीलाबहन इंस्पेक्टर को लिखवा रही थी l
इंस्पेक्टर भी विस्मित हो गया कि रिपोर्ट लिखते-लिखते  ही चोर पकड़ा गया l
उस मजदूर ने गुनाह कबूल कर लिया और यह भी बताया कि उसने किस तरह और कहाँ से यह गहने चुराये थे l और नीला बहन को भी पहचान लिया l लिखापट्टी करके इंस्पेक्टर ने गहने नीला बहन को सौंप दिये l
इस तरह धनलक्ष्मी माँ की कृपा से चोरी हो गये गहने नीला बहन को तुरन्त वापस मिल गये l नीला बहन ने ग्यारह शुक्रवार 'वैभवलक्ष्मी व्रत' की पुस्तक भाव से बांटी और अपनी मन्नत पूरी की l
ऐसा है 'वैभवलक्ष्मी व्रत' का प्रभाव l

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